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उदितराज बोले- BJP को केवल दलित वोट चाहिए, दलित नेता नहीं

जयपुर : टिकट नहीं मिल पाने के कारण हाल में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए उदित राज ने मंगलवार को आरोप लगाया कि भगवा दल में कोई दलित तभी किसी ऊंचे पद पर पहुंच सकता है जबकि वह केवल ‘गूंगा-बहरा’ हो।

उन्होंने कहा कि रामनाथ कोविंद का नाम भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए इसलिए भेजा क्योंकि वह पार्टी में अपनी आवाज नहीं उठाते थे। उन्होंने कहा कि वह कि एक व्यक्ति के बारे में अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं न कि राष्ट्रपति संस्थ के बारे में।

भाजपा से हाल ही में कांग्रेस में आए उदित राज ने यहां संवाददाताओं से कहा,’ ..भाजपा एवं आरएसएस से खतरनाक दलितों के लिए कोई हो ही नहीं सकता। भाजपा को दलित चाहिए, दलित नेता नहीं चाहिए।’

उन्होंने कहा,’ श्रीराम नाथ कोविंद 20 मई 2014 को बायोडेटा लेकर मेरे यहां आए कि मैं उनकी सिफारिश पार्टी में कर दूं कि उनको कुछ पद प्रतिष्ठा मिल जाए। मैंने कोशिश भी की … खैर उसके बाद वह राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति बने। … तो भाजपा में गूंगा व बहरा दलित हो तो वह किसी भी पद पर पहुंच सकता है। इससे पहले भी उन्होंने एक दलित को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। अब उन्होंने राष्ट्रपति बनाया है।’

एक सवाल के जवाब कें उन्होंने कहा,’कोई गलत कहा क्या मैंने? कौन-सी योग्यता है उनकी, कौनसी दलितों की लड़ाई लड़ी। मैं व्यक्ति की बात कर रहा हूं, समाज को संबोधित कर रहा हूं, राष्ट्रपति की थोड़ी कर रहा हूं। देखिए मैं राष्ट्रपति संस्थान पर नहीं कह रहा हूं। इसके माध्यम से दलित की स्थिति के बारे में व्याख्या कर रहा हूं। राष्ट्रपति का पद आदरणीय है और हम सभी का उसके प्रति आदर है। इसमें कोई शक नहीं है।’

उन्होंने दलितों के विभिन्न मुद्दों को लेकर भाजपा की कड़ी आलोचना की और कहा कि भाजपा की केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति जन जाति वर्ग का इतना नुकसान किया है जिसकी भरपाई करना संभव नहीं है।

उन्होंने भाजपा शासन के दौरान दलितों के साथ अन्याय का आरोप लगाते हुए कहा कि दलितों के बारे में ये (भाजपा) सिर्फ बड़ी.बड़ी बातें ही करती हैं लेकिन इनके कार्यकलापों से इनके अधिकारों पर कुठाराघात ही हुआ। इनकी वजह से ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय दिव्यांग मंत्रालय बनकर रह गया है और उसी तरह से अन्य संस्थान जैसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाति आयोग, सामाजिक न्याय संबंधी स्थायी समिति का अस्तित्व लगभग खत्म सा हो गया है।

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