नई दिल्ली : बुधवार तड़के आगजनी और दोपहर होते-होते 15 सुरक्षाकर्मियों समेत 16 लोगों को उड़ा देने की घटनाएं संयोग नहीं हो सकती। विशेषज्ञों के मुताबिक नक्सलियों ने पहले सुनियोजित साजिश के तहत सुरक्षाकर्मियों को फंसाया फिर धमाका करके उनकी जान ले ली। यानी पुलिसकर्मी नक्सलियों की चाल को समझने में नाकाम रहे।
इस साजिश की शुरुआत बुधवार तड़के एक बजे हुई। सुबह एक से चार बजे के बीच कुरखेड़ा तहसील के दादापुर गांव में नक्सलियों ने एक साजिश के तहत 25 वाहनों में आग लगा दी। उन्हें यह अच्छी तरह मामलूम था इस अगाजनी की घटना के बाद पुलिसकर्मी उन्हें जरूर ढूंढ़ेंगे। सुरक्षाबलों के हरकत में आने का अनुमान लगाते हुए नक्सली तय रणनीति के तहत घात लगाकर बैठ गए। जैसे ही पुलिसकर्मियों का काफिला उनके घेरे में आया उन्होंने आईईडी धमाका कर दिया। महाराष्ट्र के डीजीपी सुबोध जायसवाल ने भी जवानों को फंसाए जाने की आशंका को खारिज नहीं किया है।
नहीं दे पाए चकमा
सुरक्षा बलों को भी नक्सलियों की चालबाजी का आभास था। उन्हें अपनी गाड़ियों के निशाना बनाए जाने की आशंका थी। यही वजह थी कि कुरखेड़ा पुलिस स्टेशन की क्विक रिस्पॉन्स टीम ने मूवमेंट के लिए प्राइवेट बस को किराये पर लिया, ताकि नक्सलियों को चकमा दिया जा सके। लेकिन नक्सली सुरक्षाकर्मियों की हर चाल पर बारीक नजर रखे हुए थे। उन्हें पहले से ही मालूम था कि पुलिस टीम प्राइवेट बस से आ रही है। गौरतलब है कि नक्सली लंबे वक्त से कासनसुर में पिछले साल 22 और 23 अप्रैल को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में अपने 40 काडर के मारे जाने का बदला लेने की फिराक में थे। मुठभेड़ की पहली बरसी पर वे सात दिनों का ‘शहीद सप्ताह’ भी मना रहे थे। माना जा रहा है कि उसी का बदला लेने के लिए नक्सलियों ने हमला किया।
गढ़चिरौली में 2009 के बाद से सबसे बड़ा हमला
बुधवार का हमला गढ़चिरौली में 2009 के बाद से सबसे बड़ा नक्सली हमला है। 2009 में अलग-अलग नक्सली हमले में 51 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। उस साल ग्यारापत्ती के नजदीक हमले में 15, लहेरी में 19 और हेट्टिगोटा में 16 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे।
source by LH