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किसी प्रदेश पर नहीं थोपी जाएगी कोई भाषा, सभी भारतीय भाषाओं का करते हैं सम्मान: केंद्र

नई दिल्ली : स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने स्पष्ट किया है कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। निशंक ने स्पष्ट किया कि ह्यहमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है। इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जाएगी, उसके बाद ही कोई निर्णय होगा। वह बोले, कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है।

उन्होंने कहा कि हमारी सरकार, सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है। किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जायेगी । यही हमारी नीति है, इसलिये इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है । गौरतलब है कि पिछले शुक्रवार को के. कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंपा था । इसके तहत नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर हंगामा मचना शुरू हो गया है। इसे लेकर तमिलनाडु से विरोध की आवाज उठ रही है। द्रमुक के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और मक्कल नीधि मैयम नेता कमल हासन ने इसे लेकर विरोध जाहिर किया है।

तिरूचि सिवा ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है। माकपा ने रविवार को कहा कि इस तरह जोर-जबर्दस्ती से हिंदी को थोपने से ‘भाषायी वर्चस्व’ की भावना को बढ़ावा मिलेगा जो देश की एकता के लिए नुकसानदायक होगा। पार्टी ने बयान में कहा, माकपा का पोलित ब्यूरो स्कूली शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर तीन भाषा फार्मूले को लागू करने का विरोध करता है।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कही ये बात

वहीं, कांग्रेस सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने रविवार को कहा कि त्रिभाषा फार्मूले का समाधान इस योजना के बहिष्कार से नहीं बल्कि इसका बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित करने से निकलेगा। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नए मसौदे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह बात कही। थरूर ने कहा कि यह फॉर्मूला 1960 के दशक के मध्य का है लेकिन इसे कभी सही तरीके से लागू नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘दक्षिण में हम में से अधिकांश लोग हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में सीखते-पढ़ते हैं लेकिन उत्तर में कोई मलयालम या तमिल नहीं सीखता है।’

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