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जान बचाने वाला खून ही दे रहा है HIV का वायरस, RTI से हुआ खुलासा

नई दिल्ली | ब्लड और ब्लड प्रॉडक्ट्स के जरिए दिल्ली सहित पूरे देश में एचआईवी पॉजिटिव होने के मामले बढ़ रहे हैं। दिल्ली में पिछले साल 172 लोग ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से एचआईवी का शिकार हुए हैं। यूपी और बंगाल के बाद ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से एचआईवी का शिकार होने के सबसे ज्यादा मामले दिल्ली में सामने आए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लड बैंक की लापरवाही और डोनर की ठीक से जांच की कमी की वजह से यह खतरनाक बीमारी फैल रही है। चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि इस तरह से एचआईवी फैलने के मामले नए नहीं हैं। सालों से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं और इसे रोक पाने के लिए अभी तक कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए।

2001-02 से नाको ने डेटा जुटाना शुरू किया
एक सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी द्वारा आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल पर नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (NACO) की तरफ से दिए गए जवाब में इसका खुलासा हुआ है। 2001-02 से नाको ने यह डेटा जुटाना शुरू किया था, उस समय पूरे साल में केवल 234 मामले सामने आए थे। जो अगले ही साल 2002-03 में बढ़कर 1475 तक पहुंच गए। इसके बाद लगातार यह मामला बढ़ता गया। जहां तक दिल्ली की बात है, 2015-16 में सबसे अधिक 188 मामले आए थे। यूपी और बंगाल के बाद दिल्ली के लोग सबसे ज्यादा इसका शिकार हो रहे हैं। 2017-18 में यूपी में अब तक के सबसे अधिक 342 मामले सामने आए थे तो वहीं बंगाल में 176 मामले पिछले साल सामने आए थे।

जांच की कमी है इसकी प्रमुख वजह
डॉक्टरों का कहना है कि ब्लड डोनेशन से जमा किए गए ब्लड की जांच एलेजा तकनीक से होती है। इस तकनीक से एचआईवी की जांच का विंडो पीरियड तीन से छह महीने का होता है। मतलब कि अगर तीन महीने पहले किसी डोनर को एचआईवी हुआ होगा तो उसका पता यह मशीन नहीं लगा पाती। फिर जब उस ब्लड को दूसरे में ट्रांसफ्यूज कर दिया जाता है उसे भी एचआईवी का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर पूरे देश में इसी से जांच होती है। हालांकि इसके अलावा एक नैट टेस्ट है, जो एचआईवी को सात दिन के विंडो पीरियड में भी पकड़ लेता है, लेकिन यह महंगा टेस्ट है। इसलिए सरकार ने इसे अनिवार्य नहीं किया है, क्योंकि इससे ब्लड महंगा हो जाएगा और गरीबों के लिए मुश्किल बढ़ जाएगी।

स्वेच्छा से ब्लड डोनेट करने वालों की कमी
लैब चलाने वाले डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि ब्लड की डिमांड बहुत ज्यादा है और वॉलेंट्री डोनर नाम मात्र के हैं। अधिकतर लोग अपने रिश्तेदार के बीमार होने पर ही डोनेशन करते हैं, इच्छा से नहीं। ज्यादातर प्रफेशनल डोनर होते हैं जो डोनेशन के दौरान अपनी बीमारी छिपा लेते हैं और यह खतरनाक हो जाता है। वहीं, ब्लड डोनेशन को प्रेरित करने और इसके लिए ऐप बनाने वाले किरण वर्मा का कहना है कि ब्लड बैंक डोनेशन के दौरान सख्ती बरतनी चाहिए और इस दौरान एक्सपर्ट लोग होने चाहिए। एक अन्य डॉक्टर ने कहा कि यह ब्लेम गेम नहीं होना चाहिए। जहां भी डोनेशन हो रहा है उसके पास पूरी स्टाफ की संख्या हो, एक्सपर्टीज हो, ताकि ठीक से हिस्ट्री ले सके, बात कर सके।

source by nbt

mitan bhoomi

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