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छत्तीसगढ़ के मल्टीफ्लेक्सों में छत्तीसगढ़ी सिनेमा नही लगा तो दुसरा भी लगने देंगे – अरुण पाण्डेय्


रायपुर: ज्ञात हो कि विगत 26 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दो दर्जन सिनेमाघरों में एक साथ छत्तीसगढ़ी फिल्म महूं कुंवारा तहूं कुंवारी का प्रदर्शन हुआ। सारे सेंटरों में यह छत्तीसगढ़ी फिल्म अच्छा बिजनेस कर रही है। इसके बाद भी दुर्ग एवं राजनांदगांव के सिनेमाघरों से इस फिल्म को उतार दिया गया। धरना स्थल से मिसाल न्यूज़ से बात करते हुए आंदोलनकारियों ने कहा कि राजनांदगांव की कमल छाया टॉकीज में महूं कुंवारा तहूं कुंवारी अच्छे कलेक्शन के साथ चल रही थी। एग्रीमेंट तोड़कर इस फिल्म को उतार दिया गया और हिन्दी फिल्म लगा दी गई। इसी तरह दुर्ग की अप्सरा टॉकीज में अच्छे कलेक्शन के बावजूद महूं कुंवारा तहूं कुंवारी उतार दी गई और उसकी जगह अंग्रेजी फिल्म थर्ड आई लगा दी गई। अप्सरा टॉकीज के बुकिंग एजेंट का कहना था कि हम छत्तीसगढ़ी फिल्म नहीं लगाते। एक हफ्ते के लिए फिल्म लगा दी उस बात का अहसान मानो। वास्तविकता यह है कि अप्सरा टॉकीज में महूं कुंवारा तहूं कुंवारी के सामने थर्ड आई का कलेक्शन 25 प्रतिशत भी नहीं आया। वहीं राजधानी रायपुर के मल्टीप्लेक्स में पीवीआर, आइनॉक्स, सिनेमैक्स एवं कार्निवल जैसी कंपनियां छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लगाना ही नहीं चाहतीं। इन कंपनियों का मानना है कि छत्तीसगढ़ी सिनेमा की ऑडियन्स उनके मल्टीप्लेक्स के लायक नहीं है।
शिवसेना नेता अरुण पाण्डेय् ने इस विषय पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते कहा हैकि अगर इन बड़े सिनेमाघरों के संचालकों को छत्तीसगढ़ की जनता पसंद नही है, तब बोरिया बिस्तर बांध कर वापस जाने की तैयारी कर लेवें.
छत्तीसगढ़ी भाषा में बनाये जा रहे फिल्मों का प्रदर्शन इन्हे अपने सिनेमाघरों में करना होगा, ऐसा नही करने पर शिवसेना उग्र प्रदर्शन करने बाध्य होगी.
पाण्डेय् ने कहा हैकि शासन द्वारा बिना किसी सहयोग से छत्तीसगढ़ के फिल्म निर्माताओं द्वारा लगातार राज्य की संस्कृती व रहन सहन को स्थानीय भाषा में फिल्म के माध्यम से विश्व के सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है।
अगर छत्तीसगढ़ राज्य में व्यवसाय कर रहे बड़े सिनेमाघरों के संचालक स्थानीय निर्माताओं द्वारा बनाये गये फिल्मों के प्रदर्शन नही करने का फैसला वापस नही लेती है तब शिवसेना द्वारा स्थानीय कलाकारों व निर्माताओं के साथ उग्र प्रदर्शन हेतु बाध्य होगी.

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