BREAKINGसामाजिक मुद्दा

तुम तस्वीर बनाना क्यों नहीं सीखते। यह जो है एक दिन चला जाएगा

धार..एक अभियान/नवीन श्रीवास्तव,पत्रकार

जिस देश में ..जिस समाज में ..युवा बेरोजगारी से तंग आ आत्महत्या की सोचे.. जब बाजारू षडयंत्र के साथ नशा ..नई पीढ़ियों को दीमक की कुतरने लगे ..वह समाज, देश युवा नहीं हो सकता ? युवापन..केवल युवा उम्र के युवक युवतियों का समूह मात्र नहीं है ..यह एक भाव है..एक विचार है जो अजय हो जिसे कोई परिस्थिति परास्त ना कर सके..

जब हंसी जुर्माना हो जाती है और खुशियों पर पहरा लगता है तब एहसास होता है की सुख किसे कहते हैं ..आज समय के दहलीज पर जब देश के अधिसंख्य युवा ..आत्ममुग्ध हैं फिर ऐसे में समष्टि भाव… समूह भाव कैसे जागेगा… समाज सही स्वरूप में कैसे जागेगा हमारे पीढ़ियों को किस तरह से सामाजिक परिवेश मिलेगा..

रिश्तों की गमक का क्या होगा .. जब प्रेम की प्राथमिक सीढ़ी ही आत्ममुग्धता से शुरू होगी तो युवा वर्ग तो अपने में उलझ कर रह जाएगा रचनात्मकता खत्म हो जाएगी.. जितने समय में खेल कर ,कसरत कर खुद को मजबूत किया जा सकता जितने समय में एक कविता लिखी जा सकती है कोई कलाकृति बनाई जा सकती है घर के कामों में हाथ बांटा जा सकता..

कोई गीत लिखा जा सकता है किसी की मदद या श्रम कर उसकी कीमत हासिल किया जा सकता है उतना ही समय गली,सड़क,नुक्कड़ों पर ..बेकार धुंवा उड़ाते या आईना निहारने में क्यों गुजरे….

युवा पीढ़ी से आगत कल को जन्म लेना है उन्हीं के हाथों छैनी और हथोड़ा है जिससे भविष्य को तराशा जा सकता है उन्हीं के जिस्म पर गर्मी है जिससे विकास के रास्ते जमी समस्याओं के बर्फ को पिघलाया जा सकता है ..उन्हीं के हाथों चौखट भी गढ़ा जाना है ..दीवारें खड़ी की जानी है और छत भी जिसके नीचे भविष्य के सारे सपने आपदा से सुरक्षित हो जाए पर यह तभी संभव है जब देश के युवाओं को पता चल जाये कि उनके रगों में गर्म खून क्यों बहता है ..इच्छा क्यों होती है कि दुनिया को उलट- पलट दें ..कुछ तो बात है ..जब तक इन युवाओं को ठीक-ठीक पता नहीं चलेगा यह सब अपनी शक्तियों को सही जगह खर्च नहीं कर पाएंगे..

mitan bhoomi

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