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IVF डे आज, क्या कमजोर होते हैं टेस्ट ट्यूब बेबी ! जानें

हर साल 25 जुलाई को आईवीएफ डे मनाया जाता है। IVF यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, जिसे आम भाषा में लोग टेस्ट ट्यूब बेबी कहते हैं। IVF एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिये कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराया जाता है। IVF डे को मनाने की शुरुआत साल 1978 से हुई। 25 जुलाई 1978 को IVF के जरिए पहले बच्चे का जन्म हुआ था तभी से हर साल इस दिन को IVF डे या विश्व भ्रूणविज्ञानी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

विज्ञान की देन यह तकनीक ऐसे दंपत्ति के लिये किसी वरदान से कम नहीं है जो माता-पिता नहीं बन पा रहें हैं। आज ऐसे कई दंपत्ति हैं जो IVF की मदद से माता-पिता बन चुके हैं, लेकिन जानकारी के अभाव और भ्रम की स्थिति के कारण आज भी कई ऐसे लोग हैं जो इस टेक्नोलॉजी की मदद लेने से कतराते हैं। आईवीएफ डे के खास मौके पर हम यहां आपको ऐसे ही भ्रम और तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जो IVFसे जुड़े हुये हैं।

क्या है टेस्ट ट्यूब बेबी

आईवीएफ निसंतानता का इलाज करने का एक वैज्ञानिक तरीका है। आईवीएफ को टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है। इस तकनीक में महिला के शरीर में होने वाली फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया, जिसमें महिला के एग और पुरुष के स्पर्म का मिलन होता है, को बाहर लैब में किया जाता है। इस तरह लैब में बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इससे महिला गर्भ धारण कर लेती है।

IVF से जुड़े भ्रम और तथ्य

1. IVF को लेकर भ्रम है कि इसमें केवल मल्टीपल प्रेग्नेंसी होती हैं जो पूरी तरह सत्य नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा इस कारण होता है क्योंकि इस ट्रीटमेंट के दौरान एक बार में कई एम्ब्र्यो ट्रांसफर किए जाते हैं, जिससे महिला सही समय पर गर्भधारण कर सके। इस कारण मल्टीपल प्रेग्नेंसी के अवसर बढ़ जाते हैं। हालांकि, IVF के 5 मामलों में से एक में ऐसा होने की संभावना रहती है।

2– ऐसा मिथ है कि IVF केवल ज्यादा उम्र के लोगों के लिए है, लेकिन यह सत्य नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक IVF उन सभी दम्पत्तियों के लिए है, जो किसी भी कारण से बच्चा पैदा करने में असफल हो रहें हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक आजकल की दौड़भाग भरी जिंदगी से उपजे तनाव, खान-पान में पोषण की कमी, शराब व धूम्रपान जैसी आदतों के कारण युवा कपल्स पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है और वे बांझपन का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में युवा जोड़े भी IVF का फायदा उठा सकते हैं।

3– ऐसा भी मिथ है कि IVF बच्चे पैदा करने का नेचुरल तरीका नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह सच नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक IVF विज्ञान की मदद से नेचुरल तरीके से ही गर्भधारण करने में हेल्प करता है। हां इतना जरूर है कि एग और स्पर्म का फर्टिलाइजेशन लैब के वातावरण में कराया जाता है जो इसके शुरुआती चरण की प्रक्रिया है। बाकी एक बार गर्भधारण करने के बाद भ्रूण का विकास 9 माह तक मां की कोख में ही नेचुरल तरीके से होता है।

4- ऐसा भ्रम है कि IVF ओबेसिटी के शिकार लोगों पर काम नहीं करती। विशेषज्ञों के मुताबिक मोटापे के कारण हो सकता है कि ऐसे लोगों में एग्स की गुणवत्ता पर असर पड़े।
इस कारण से IVF ट्रीटमेंट करवाने वाले ऐसे लोगों को वजन करने के लिये कहा जाता है।

5- ऐसा भी भ्रम लोगों में है कि IVF ट्रीटमेंट लेने से कैंसर होने का खतरा बढ़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बात सत्य नहीं है। इस ट्रीटमेंट से कुछ परेशानियां शरीर में हो सकती है, लेकिन कैंसर इससे नहीं होता।

6- ऐसा मिथ है कि IVF से होने वाले बच्‍चे कमजोर होते हैं और जल्दी-जल्दी बीमार पड़ते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इस बात में सच्चाई नहीं है। ये बच्चे भी नैचुरली कंसीव होने वाले बच्‍चों की तरह ही हेल्दी होते हैं क्योंकि यह भी पूरे 9 महीने तक मां की कोख में वैसे ही पोषण पाते है जैसे अन्य।

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