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चुनाव परिणाम के बाद संकट में दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य

रायपुर। राजनीति कब किस करवट बैठेगी यह कोई नहीं बता सकता। यहां न तो कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन। यह कह सकते हैं कि राजनीति व राजनेता भी स्थायी नहीं है। छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम कुछ ऐसा ही संकेत दिए हैं। दो दशक से छत्तीसगढ़ की राजनीति में सितारे की तरह चमक रहे राजनेताओं का किला नए चेहरों ने ध्वस्त कर दिया है।

चुनाव परिणाम से कुछ नेता चुनाव लड़कर हारने के चलते तो कुछ बिना लड़े ही क्षेत्र में साख नहीं बचा पाने के चलते नेता नेपथ्य में चले गए हैं। इनमें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव हारने के बाद और पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज अपना गढ़ नहीं बचा पाने के कारण संकट में दिख रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, पूर्व मंत्री कवासी लखमा, पूर्व मंत्री डा. शिव डहरिया, भाजपा की नेत्री सरोज पांडेय भी चुनावी मैदान में अपनी साख नहीं बचा पाए।

कांग्रेस के सबसे मजबूत चेहरे के रूप में उभरे भूपेश बघेल इस चुनाव में कमजोर साबित हुए। इसी तरह कांग्रेस के कद्दावर नेता टीएस सिंहदेव अपने क्षेत्र सरगुजा में लगातार बेअसर रहे । विधानसभा चुनाव में सिंहदेव स्वयं चुनाव हारे और लोकसभा चुनाव में वह दूसरों को चुनाव जितवा भी नहीं सके। हालांकि इस चुनाव में वह व्यक्तिगत कारणों से प्रत्यक्ष रूप से सक्रिय नहीं रहे मगर क्षेत्र में उनका वर्चस्व भी कम होता दिख रहा है।

भूपेश-सिंहदेव की जोड़ी को पिछले पांच वर्षों में जय-वीरू की जोड़ी के नाम से जाना जाता रहा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में सिंहदेव ने ही घोषणा पत्र तैयार किया था और प्रचंड बहुमत के साथ 90 विधानसभा सीट में से कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बीच 15 वर्ष की पूर्ववर्ती डा. रमन सिंह की भाजपा सरकार सत्ता से बेदखल हो गई थी।

कांग्रेस ने भी भूपेश को प्रथम पंक्ति के नेता के रूप में पूरे देश में प्रोजेक्ट किया था मगर विधानसभा चुनाव 2023 में भूपेश विधायक तो बने पर अपनी सरकार बचाने में नाकाम रहे। अभी भूपेश को कांग्रेस ने राजनांदगांव से टिकट दी थी मगर वहां भी उन्हें भाजपा के संतोष पांडेय से हार ही हासिल हुई। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार अगर भूपेश लोकसभा चुनाव जीते होते तो आने वाले समय में उनका कद एक बार फिर मजबूत हो सकता था।

राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू का तो राजनीतिक कैरियर खत्म होने की ओर अग्रसर हो गया है क्योंकि वह उम्रदराज हो चुके हैं। यह अवसर उनकी राजनीतिक भविष्य के लिए बेहतर था पर उन्हें भाजपा की रूप कुमारी चौधरी ने परास्त कर दिया।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी बड़ी हार मिली है, ऐसे में संगठन में उनको लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। भाजपा की बात करें तो यहां राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय का राजनीतिक भविष्य में संकट में दिख रहा है।

पार्टी ने बड़ी उम्मीद के साथ उन्हें कोरबा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया था मगर नेता प्रतिपक्ष डा. चरणदास महंत के क्षेत्र में भाजपा सेंध लगाने में नाकाम रही। इसके पहले सरोज राज्यसभा सदस्य रहीं। उन्हें दोबारा राज्यसभा सदस्य नहीं बनाया गया था ताकि उन्हें लोकसभा क्षेत्र में लाया जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरोज जीततीं तो वह केंद्रीय मंत्री की दौड़ में शामिल थीं।

इधर, कोरबा सीट पर कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष डा. महंत सफल रहे और कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज विफल दिख रहे हैं क्योंकि उनके कांग्रेस के खाते की बस्तर की सीट भी अब भाजपा की झाेली में जा चुकी है। कांग्रेस के पूर्व मंत्री कवासी लखमा और डा. शिव डहरिया को चुनावी मैदान में उतारा था। इसके साथ पूर्व विधायकों पर भी दांव खेला था मगर सभी को हार ही मिली है।

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